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फिल्म समीक्षा – कबीर सिंग

फिल्म समीक्षा – कबीर सिंग
यह फिल्म 2017 में आई तेलगू फिल्म अर्जुन रेड्डी का रीमेक है | दोनों फिल्मों के डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा ही है |
फिल्म के शुरुवाती द्रश्यों में कबीर सिंग (शाहिद कपूर ) पूरी तरह से बर्बाद बंदा है | लेकिन उसके व्यक्तित्व का एक आश्चर्यजनक हिस्सा यह भी है कि वह एक कुशल डॉक्टर है और अपने काम के प्रति ईमानदार है ! कबीर हर बात में नंबर वन है – चाहे वह मेडिकल की पढ़ाई हो या खेल का मैदान लेकिन सिर्फ एक चीज़ है जिसपर उसका काबू नहीं है और वह है उसका गुस्सा | जिसकी वजह से उसे हर जगह नाकाम होना पड़ता है – कॉलेज का टॉपर होने के बावज़ूद वहाँ से निकाले जाने की नौबत आना, अपने प्यार को हासिल करने के बाद भी उसे खो देना, कमाल का सर्जन होने के बाद भी नशे की लत की वजह से प्रैक्टिस बंद हो जाना ........घर से निकाला जाना | कबीर एसा हीरो है जो अपनी बुरी आदतों से खुद को बर्बाद कर लेता है अपने अपनों को दुःख देता है उनसे दूर हो जाता है | वह प्रीती सिक्का (कियारा अडवानी ) से एकबार भी नहीं पूछता कि वो उससे प्यार करती है या नहीं ! बस उसे देखते ही कहता है ये मेरी “बंदी” है | हैरानी की बात तो ये है की दिल्ली के मेडिकल कॉलेज कैम्पस में, क्लासरूम से लेकर होस्टल तक कबीर अपनी बंदी के साथ जो चाहे वो करता है – और कोई उसे रोक नहीं पाता ! वही कबीर प्रीती की शादी रोकने में असमर्थ हो जाता है, उसे खो देने के गम में अपनी बुरी आदतों में बहता चला जाता है |
अभिनय – शाहिद ने अच्छा अभिनय किया है, वे किरदार में पूरी तरह उतरते है ....लेकिन कुछ द्रश्यों में बनावट भी लगती है जब अपनी दादी के मर जाने के बाद वो अपने पिता से बात करते है वह द्रश्य कमज़ोर है | कियारा का अभिनय ठीक – ठीक है | आदिल हुसैन बहुत कम समय समय के लिए परदे पर आते है लेकिन अपनी छाप छोड़ जाते है ! अर्जन बाजवा, सुरेश ओबेराय, और कामिनी कौशल का काम भी औसत है | हाँ कबीर के दोस्त के किरदार में – सोहम मजुमदार ने अच्छा अभिनय किया है |
फिल्म का निर्देशन, ट्रीटमेंट,साउंड औसत है | पटकथा में और काम हो सकता था, फिल्म के पहले हिस्से की एडिटिंग भी कमज़ोर है | संगीत धीरे से ज़हन में ठहरता है ....सुनते ही अच्छा लगने या जबान पे चढ़ने वाले गीत नहीं है |
फिल्म की कई घटनाओ में अतिश्योक्ति लगतीं है – कॉलेज कैम्पस वाली और हॉस्पिटल वाली जहाँ कबीर सिंग काम करता था | कई घटनाओं को और ख़ूबसूरती से बुना जा सकता था – जब कबीर और प्रीती लाँग डिस्टेंस रिलेशन में होते है | कबीर के घर और भाई की शादी के द्रश्य भी कमज़ोर है | दादी और कबीर के बीच बड़े – बड़े डॉयलॉग्स तो है लेकिन फिर भी द्रश्य असर नहीं छोड़ते है | फिल्म औसत सी है ....लेकिन शाहिद के लिए देखी जा सकती है |
निर्देशन – संदीप रेड्डी वांगा
अभिनय – शाहिद कपूर ,कियारा अडवानी, सुरेश ओबेरॉय, सोहम मजुमदार, अर्जन बाजवा आदिल हुसैन |

प्रियंका वाघेला
22 \6 \2019

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