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फिल्म समीक्षा – दे दे प्यार दे

फिल्म समीक्षा – दे दे प्यार दे
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आशीष (अजय देवगन)उम्र पचास, पिछले 18 सालों से अपने परिवार से अलग रह रहा है लन्दन में, अपने से आधी उम्र की लड़की आएशा ( रकुलप्रीत ) से उसे प्यार हो जाता है ! आएशा भी उम्र के इस फ़ासले के बावज़ूद आशीष से प्यार कर बैठती है | आएशा को अपने परिवार से मिलवाने आशीष इंडिया लेकर आता है ....खुद से जुड़े हर रिश्ते को आशीष छोड़कर चला गया था सालों पहले अपनी ज़िन्दगी अपने ढंग से जीने के लिए –तो उसके इस तरह अचानक, बिना बताये आ जाने से उसका परिवार- खासकर बेटी नाखुश है यहाँ सभी ने उसके बिना जीना सीख लिया है |
फिल्म अपने पहले भाग में आशीष और आएशा के बीच प्यार और उम्र के फ़ासले पर हास्य व्यंग के ताने-बाने को लेकर आगे बढ़ती है, अजय देवगन और जावेद जाफरी (डॉक्टर और आशीष का दोस्त) के बीच के संवाद- उम्र और रिश्ते की बहस में हास्य का बुलबुला बनाते है ख़ासकर जावेद जाफरी जब अजय को बुड्ढा बुलाते है तो हंसी का बुलबुला ज़ोर से फूटता है, जावेद उन दोनों के बीच के ‘जनरेशन गैप’ को लेकर अपने दोस्त को सावधान भी करता है | आशीष आएशा को इंडिया ले तो आता है लेकिन परिवार के लोग भी आशीष की ही तरह आगे बढ़ चुके है अपने नए रिश्ते के बारे में आशीष एकदम से नहीं कह पाता आऐशा भी वहाँ अपने हमउम्र बच्चों को देखकर हैरान है और फिर सामने आती है तब्बू ! खूबसूरत ग्रेसफुल और समझदार, अनुभवी आँखें आएशा को पढ़ लेती है | फिर शुरू होता है परिवार का असली मज़ा -थोड़े ताने कुछ खीचातानी कॉमेडी,ट्रेजेडी ,लेकिन इन सबके बीच तब्बू (मंजू ) अपने अभिनय से फिल्म के दुसरे भाग में छाई रहती है इतनी बारीकी से उन्होंने सालों से अलग रह रही बीवी का ,अकेली माँ ,और परिस्थितियों से अकेले निपटती स्त्री का किरदार निभाया है की आँखे उनपर से हटती ही नहीं है !
यह फिल्म लिव-इन ,प्यार ,उम्र के फ़ासले और रिश्तों के टूटने के बारे में काफी सुलझे हुए ढंग से अपनी बात कहती है आशीष (अजय देवगन) रिश्तों को निभाने में कामयाब भले ही न रहा हों लेकिन वह रिश्तों को लेकर ईमानदार है इसलिए तब्बू से राखी बंधवाने वाला सीन थोड़ा ओवर लगता है जबरदस्ती हास्य को घुसाने की कोशिश की गयी है |कुमुद मिश्रा अपने छोटे से रोल में भी काबिले तारीफ़ अभिनय से अपनी उपस्थिति बनाये रखते है उनकी और समधन तब्बू की - लिव इन के विषय पर बातचीत काफ़ी रोचक और दोगली मानसिकता को उघाड़ने वाली है !जिमी शेरगिल का किरदार काफ़ी कमज़ोर लगा शायद बुनावट थोड़ी बेहतर होती तो वे अच्छा कर सकते थे रकुलप्रीत ने अपने हिस्से का अभिनय अच्छा किया है लेकिन तब्बू की एंट्री होनें के बाद दूसरों पर ध्यान कम जाता है ,बाकी कलाकारों का अभिनय ठीक – ठीक है| फिल्म के गाने सामान्य से है ....तब्बू के सुलझे हुए किरदार को गढ़ने के लिए लेखक को बधाई ! अकीव अली हास्य को रचने में थोड़े से कमज़ोर लगे ...लेकिन फिर भी फिल्म के कई द्रश्य सहज और भावनात्मक रूप से ख़ूबसूरती से गढ़े गये है ,कुल मिलाकर फिल्म देखने जैसी है |

डायरेक्टर – अकीव अली
अभिनय – अजय देवगन, तब्बू, रकुलप्रीत सिंग, जिमी शेरगिल, जावेद जाफरी, कुमुद मिश्रा .
प्रियंका वाघेला
18 \5\2019
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