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फिल्म समीक्षा - The Fakir of Venice

हद –अनहद दोउ तपे वाको नाम फ़कीर
फिल्म समीक्षा - The Fakir of Venice
आदि कॉन्ट्रैक्टर (फरहान अख्तर ) इस फिल्म में एक ऐसा बंदा है - जो कभी किसी भी काम के लिए ना नहीं कहता फिल्मों और आर्ट गैलरी के लिए(Production coordinator ) काम करता है उन्हें जो भी चाहिए हो “आदि” हाज़िर कर देता है ! फिल्म के पहले ही द्रश्य में आदि एक बन्दर को फॉरेन फिल्म क्रू के लिए बॉर्डर पार करवाकर पहुँचाता है, बन्दर गाड़ी के भीतर थोड़ा परेशान दिखाई पड़ता है ऊपर से आदि उससे अंग्रेजी में बात करता है, "बन्दर और आदि ( इंसान ) के बीच कोई भाषा हो भी नहीं सकती है अगर कुछ हो सकता है तो वो है संवेदनशीलता जो आदि के किरदार में नहीं है” बेचारा बन्दर किसी तरह सो जाता है |
आदि विदेश में फिल्म स्कूल में पढ़ना चाहता है जिसके लिए उसे पैसे चाहिए जो शायद उसे खुद को जुटाने है, फिल्म में उसके परिवार का कोई ज़िक्र नहीं है उसे देश से बाहर जाना है और इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है - इसबार उसे वेनिस के एक आर्टिस्ट के आर्ट इंस्टालेशन के लिए एक फ़कीर का इंतजाम करना है जो अपने आपको ज़मीन में दफ़न कर सके कई घंटों तक ! तो....आदि निकल पड़ता है फ़कीर की खोज में !! बनारस के सिवाय ऐसी और कौन सी जगह हो सकती है हिन्दुस्तान में जहाँ फकीरों की फ़ौज मिले ? लेकिन नहीं – यहाँ वाकई अजब –गजब किस्म के फ़कीर है ! अनोखी लीलाएं करने में माहिर पैरों के इशारे से डॉलर मांगने वाले , एक सुट्टा मारकर पल-भर में भारत में वेनिस ले आने वाले ! लेकिन वैसे नहीं जिसकी तलाश आदि को है ... तो अपने आदि ने भी सुट्टा मारा और लौट आया खाली हाथ बिना दफ़न होने वाले फ़कीर के |
अब क्या किया जाय ? ठहरिये ....आदि अकेला नहीं है ! उसकी तरह किसी भी काम को हो जायेगा बोलनें वाला कोई और भी है – जो आदि के लिए दफ़न होने वाले सत्तार को ढूँढ निकालता है, सत्तार एक दिहाड़ी मजदूर है फ़कीर नहीं, लेकिन वह बचपन से मुंबई के जुहू बीच में अपने आपको दफ़न करने वाला खेल दिखाता आ रहा है उसकी बहन इस काम में उसकी मदद करती है | आदि सत्तार और उसकी बहन से मिलता है किसी तरह बात बन जाती है और वह सत्तार को लेकर पहुँच जाता है “वेनिस”| सत्तार एक साफ़ मन का सहज व्यक्ति है उसकी दुनिया बहन और मुंबई के चारों ओर ही सिमटी रही है वेनिस आकर सत्तार की हालत बिलकुल उस बन्दर की तरह लगती है जो चारों तरफ गोरों को देखकर हैरान है ! ऊपर से यहाँ कोई भी उसकी भाषा नहीं जानता है |खैर सत्तार आदि का काम करता है लेकिन इस बीच उसकी तबियत बिगड़ने लगती है | आदि अपना मकसद पूरा करने के लिए सत्तार का उपयोग कर रहा होता है ,मस्सिमो (वेनिस का कलाकार )सत्तार की सच्चाई जानते हुए भी अपनी कला के प्रदर्शन में सत्तार और आदि को भी शामिल कर उनका उपयोग कर लेता है और सत्तार अपनी मजबूरी की वजह से आदि से अपनी बीमारी का सच छुपाकर उसका उपयोग कर रहा होता है !
उपयोग करना ,फायदा उठाना , अपना काम निकालना ........हम सब कभी ना कभी किसी न किसी का उपयोग करते है, अपनों का- गैरों का, रिश्तों का, किसी की मजबूरी का या खुद किसी बात से मजबूर होकर ......हमें एक दूसरे की भाषा आती है लेकिन मन पढ़ना हम नहीं जानते...... आदि के पास किसी की तकलीफ़ को समझने के लिए वक्त नहीं था, सत्तार का मन साफ़ आइना था जिसमें झांको तो खुद का मन भी दिख जाता था ! लेकिन वक्त उसके पास भी नहीं था ....फिल्म इंसानी फितरतों को बखूबी बयां करती है ! कुछ एक कमियों के बावज़ूद फिल्म देखने जैसी है खासकर अन्नू कपूर का अभिनय बेमिसाल है ! फिल्म की शुरुवात बहोत ही खूबसूरत पहाड़ी इलाके के द्रश्यों से होती है ! लेकिन बाद में फिल्म के द्रश्यों में बेहतर सिनेमेटोग्राफी की कमी खलती है ,खासकर वेनिस में फिल्माएँ द्रश्यों में |पानी पर तैरते इस शहर की ख़ूबसूरती और उसकी वह खासियत जिसकी वजह से वेनिस मशहूर है नदारत है !.....
वेनिस पूरी दुनिया में अपनी कला से सम्बंधित गतिविधियों के लिए जाना जाता है, अद्वितीय संग्रहालय, आर्ट गैलरी, स्तरीय फिल्म फेस्टिवल........ फिल्म का विषय भी वेनिस और उसमें होने वाले आर्ट इंस्टालेशन पर आधारित होने के बावजूद गैलरी के द्रश्यों का फिल्मांकन काफ़ी सिमटा–सिमटा सा लगा ! वहाँ के कलाकार( मस्सिमो ) जिसने आदि को फ़कीर के साथ बुलाया था - का किरदार भी ठीक से बुना नहीं गया है, आदि सत्तार को लेकर जाता है और दफ़न करता है दो चार लोग देखकर हैरान होते है ...कुल –मिलाकर द्रश्य विषय के महत्व को कम करते से लगे द्रश्यों में थोड़ी और गहराई हो सकती थी |
ऐ आर रहमान का संगीत फिल्म की रगों में प्राण फूंकता है ,हमेशा की तरह बेजोड़ एवँ मधुर रहमान |
डायरेक्टर - आनंद सुरापुर | अभिनय - फरहान अख्तर, अन्नू कपूर, कमल सिद्धु
संगीत - ए.आर.रहमान .
- प्रियंका वाघेला
17 \5 \2019
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The Fakir Of Venice October Films India

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