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विलेज रॉकस्टार्स -फ़िल्म समीक्षा

VILLAGE ROCKSTARS
विलेज रॉकस्टार्स -फ़िल्म समीक्षा
रीमा दास असम से है अपने करियर की शुरुवात इन्होनें अभिनय से की आज एक सफल डायरेक्टर के रूप में जानी जातीं है | इनकी पहली फिल्म है “मैन विथ द बायनाकुलर्स”, “विलेज रॉकस्टार्स ” दूसरी फिल्म है जिसे नेशनल अवार्ड के साथ – साथ कई स्तरीय नेशनल , इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में नॉमिनेशंस व अवार्ड्स मिले है यह फिल्म भारत सरकार की ओर से ऑस्कर के लिए भी भेजी गयी ! रीमा दास का काम अपने अवार्ड्स के आलावा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस फिल्म को उन्होंने जितने सीमित संसाधनों में बनाया है, उसमें फ़ीचर फिल्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती है ! वे इस फिल्म की डायरेक्टर, प्रोड्यूसर,एडिटर,राइटर सिनेमेटोग्राफर,कॉस्टयूम डिज़ाइनर,और “कैमरा वुमन” भी है| आज रीमा दास एक नाम नहीं प्रेरणा है उन सभी के लिए जो फिल्म जैसी कठिन विधा में संसाधनों की कमी की वजह से काम नहीं कर पाते है या उन्हें यह यकीन दिलाया गया है कि फिल्म बनाना हुनर और जस्बे से ज्यादा बजट मिलनें पर निर्भर करता है इसलिए आज इंडस्ट्री में वही फिल्म बना पाते है जिनके पास बड़ा पैसा है | इस तरह की धारणा को ध्वस्त करते हुए रीमा दास ने ना सिर्फ फिल्म बनाई बल्कि अपने हुनर और जूनून के दम पर उसे दुनिया भर में पहचान दिलाने वाला मील का पत्थर साबित किया !खासकर एक स्त्री का उन विधाओं में मंझा हुआ काम कर जाना जो आज भी काफी हद तक पुरुषों के लिए आसान समझे जाते है – अकेले यह कर दिखाना वास्तव में कठिन रहा होगा, मैं यह इसलिए भी कह सकती हूँ क्योंकि मैं खुद एक सीमित संसाधनों वाली फ़िल्म का हिस्सा रही हूँ और तमाम तरह की परेशानियों के बीच हमने फिल्म बनाई है | रीमा आपको देखकर अच्छा काम करनें की प्रेरणा और हिम्मत दोनों मिलती है आपके काम की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम है |
रीमा दास ने यह फिल्म समर्पित की है – अपने गाँव को और उनमें रहनें वाले अपनों को ....फिल्म में धुनु का किरदार निभाया है रीमा दास की चचेरी बहन – भनिता दास नें,बाकी सारे अभिनेता भी उनके परिवार या गाँव के ही है इनमें से कोई भी प्रोफेशनल एक्टर नहीं है, बावज़ूद इसके अभिनय मंझे हुए कलाकारों जैसा है! फिल्म में जैसा दिखाया गया है वे सभी उस तरह का जीवन देखनें के आदि है शायद इसलिए भी वे अपने किरदारों के साथ सहज थे लेकिन कैमरे के सामनें कुछ इस तरह से होना की उन्हें कैमरे का पता ही नहीं है – मुश्किल काम है |
कहानी दस साल की धुनु की है जो अपने दोस्तों के साथ मिलकर रॉक बैंड बनाती है, घर में इतनी गरीबी है की कभी – कभी सिर्फ भात को नमक के साथ खाना पड़ता है .....कैसा हो सकता है इन परिस्थितियों में रह रहे बच्चों का बैंड ? थर्माकोल के टुकड़े से गिटार और लकड़ी के फट्टे से बने बाकी साजो सामान, बच्चे उनको ही रंगीन चमकीली पन्नियों से सजाकर खुश है और झूम रहे है ! धुनु अपने दोस्तों के बीच अकेली लड़की है अपने भाई और उसके दोस्तों के साथ ही स्कूल जाती है और खेला करती है, पेड़ पर चढ़ना और अपनी प्यारी बकरी मुनु के साथ खेतों में घूमते रहना उसके पसंदीदा काम है| धुनु के पिता बाढ़ की भेंट चढ़ गये थे ....माँ धुनु और उसके भाई के लिए दिनरात मेहनत किया करती है, कहानी में कोई अनोखी बात नहीं कही गयी है लेकिन धुनु की माँ के किरदार में जो आत्मविश्वाश दिखाई देता है वो अनोखा है ! धुनु माँ से पूछती है – बाढ़ हर बार फसल ख़राब कर जाती है माँ तुम हर बार क्यों उगाती हो ? माँ जवाब देती है कर्म ही हमारा धर्म है ...यही हमारे हाथ में है | धुनु अपनी माँ से पूछती है की क्या वह उसके लिए सच का गिटार ले सकती है ? वह कहीं लिखा हुआ पढ़ती है की यदि हम अच्छा सोचे और दिल से किसी चीज़ को चाहे तो वह हमें ज़रूर मिलती है धुनु इस बात पर यकीन करने लगती है की उसे भी गिटार ज़रूर मिलेगा..........माँ धुनु के लिए लोगो से लड़ती है उसे गलत करनें पर मारती भी है,पैसों के लिए दूसरो के घर जाकर काम करनें से रोकती है बाढ़ के बावज़ूद रास्ता बदल कर स्कूल जाने को कहती है ...कठिन परिस्थियों और प्राक्रतिक आपदाओं के बावज़ूद धुनु की माँ दृढ़ता और ममता दोनों की मिसाल है |
फ़िल्म के द्रश्य रंगों की कविताएँ कहते से लगते है ! प्रकृति का सरल सौन्दर्य द्रश्य की बजाय पेंटिंग्स की तरह लगने लगता है | कैमरा बहोत ही इत्मीनान से दृश्यों को देखता है अभिनय कैमरे के लिए हो भी नहीं रहा है – यहाँ वह केवल एक दर्शक की तरह उपस्थित है और जहाँ जैसी जगह मिलती है कैमरा इन घटनाओं के बीच घुस –घास के दृष्य बटोर लाता है |
अभिनय सभी का आश्चर्यजनक रूप से सहज है, जिनमें धुनु (अभंती दास )और उसकी माँ (बसंती दास ) ने तारीफे काबिल अभिनय किया है |रीमा दास अपने हर काम में फिल्म के एक संवाद की तरह ही कर्म को धर्म मानकर चलीं है जिसका असर फिल्म और उसकी उपलब्धियों में साफ़ नज़र आता है | रीमा दास और उनकी पूरी टीम को बधाई ! रीमा की तीसरी फिल्म बुलबुल कैन सिंग है जिसे देखने का मुझे बेसब्री से इंतज़ार है | फ़िल्म ज़रूर देखिये और ज़रा इत्मीनान से देखिएगा ......
डायरेक्टर – रीमा दास | अभिनय – भनिता दास ,बसंती दास.
- प्रियंका वाघेला
22 \5 \2019
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