हिचकी ......और टॉरेट सिंड्रोम
टॉरेट सिंड्रोम एक न्यूरोलौजिकल प्रॉब्लम है जिसकी शुरुवात आमतौर पर बचपन में होती है ,इस बीमारी में व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र में समस्या होती है - जिसमे वे अनियंत्रित गतिविधियाँ करते है या अचानक आवाज़े निकालते है जिन्हें Tics कहा जाता है |इसमें अचानक से आवाज़े निकालना ,बाँहें हिलाना ,गला साफ़ करना , बार - बार सूंघना , होटो को हिलाना शामिल है इन लक्षणों पर रोगी का कोई नियंत्रण नहीं रहता है ,हाँलाकि टॉरेट सिंड्रोम से रोगी की बौद्धिक क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता है ,लेकिन अपनी अनियंत्रित गतिविधियों की वजह से वे शर्मिंदगी महसूस करते है और उनकी सामजिक गतिविधियों में भागेदारियां कम होती जाती है | इस बीमारी का सटीक कारण अभी तक अज्ञात है |इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन दवाइयों और मनोवैज्ञानिक थैरेपी के जरिये इसे कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है |
फिल्म का पहला द्रश्य - रानी मुखर्जी एक स्कूल में इन्टरव्यू देने आई है ,एक बच्चे का पेपर एरोप्लेन उसके पैरों के पास आकर गिरता है रानी उसे उठाकर देते समय जा ..जा ...............जा जा की अजीब सी आवाज़े निकालती है और अपना सर झटकती है ...........यह सीन देखकर सच में हंसी आ गयी , लेकिन ये आवाज़ रूकती नहीं वो अपने मुँह में पेंसिल दबाकर उसे रोकने की कोशिश करती है तब लगता है के वो तकलीफ़ में है ! आगे के द्रश्य में जब रानी बताती है की उन्हें हिचकी नहीं आ रही ये एक बीमारी है जिसे टॉरेट सिंड्रोम कहा जाता है ....इन्टरव्यू लेने वाले लोग उनसे इस बीमारी के बारे में पूछते है की क्या सोते समय भी वे ऐसी आवाज़े निकालती हैं ? रानी जवाब देती है -नहीं सर तब तो मैं सो रही होती हूँ ना ! * लेकिन कब तक सोते रहेंगे ...मैं और मेरा टॉरेट *
नैना माथुर के किरदार की सबसे बड़ी खासियत है उनका आत्मविश्वास ! और रानी मुखर्जी ने टॉरेट सिंड्रोम को इस तरह निभाया है की हमें वे सचमें इस सिंड्रोम से पीड़ित नैना लगती है और हमारे सामने पूरी फिल्म में दो ही चीज़े रहती है उनकी तकलीफ , और दूसरों के सिंड्रोम दूर करने की कोशिशे !!
नैना टीचर ही बनना चाहती है क्योंकि जब वो छोटी बच्ची थी और इस बीमारी से परेशान थी तब उसके एक टीचर ने उसकी तकलीफ को समझा उसे सम्मानित ढंग से सामान्य बच्चों के साथ पढ़नेका हक़ दिलाया आत्म विश्वाश लौटाया जो समाज के बाकी लोगो के साथ - साथ उसके पिता भी नहीं कर पाए थे और शर्मिंदा थे उसकी कमज़ोरी पर |नैना एक अच्छे शिक्षक की कीमत पहचानती थी एक अच्छा शिक्षक छात्र का जीवन बदलनें की ताकत रखता है जो नन्हा पौधा उसकी जमीन पे नाज़ुक जड़ों के साथ आता है उसे जमीन की मजबूत पकड़ के साथ आसमान की ओर सर उठाकर देखना शिक्षक ही सिखाते है और नैना फिल्म में यह कर दिखाती है - उन्हें 9 f की क्लास मिलती है पढ़ाने के लिए जिसमे पास की झुग्गी के कुछ बच्चे आते है जिन्हें राईट टू एजुकेशन के तहत एडमिशन देना स्कूल की मजबूरी होती है और पूरे स्कूल के लिए ये बच्चे किसी सिंड्रोम की तरह है, जिससे वे छुटकारा पाना चाहते है | नैना इन बच्चों के लिए स्कूल और टीचर्स की नापसंदगी को देखती और समझती है , वहीँ दूसरी ओर बच्चों की नफ़रत ,बदमाशियों ,और उसे भगा देने की सारी कोशिशों को अंततः अपने लिए प्यार और सम्मान में बदल देती है साथ ही बदलते है 9 f के सभी बच्चे और पूरा स्कूल !
हम सभी अपनी कमियों से भागते है , उन्हें स्वीकारना नहीं चाहते ठीक नहीं करना चाहते ....वैसे भी जब तक स्वीकारेंगे नहीं तो कमियाँ ठीक भी कैसे होँगी ? हाँ लेकिन एक चीज़ जरूर है जो हममे से अधिकांश लोग किया करते है - दूसरों में कमियाँ खोजना और उनकी हंसी उड़ाना......उसपर अगर किसी को शारीरिक अक्षमता हो तो हम उसकी सहायता के लिए आगे आने की बजाय उसपर आसानी से हँस लेते है या किनारा कर लेते है | हम सभी को परफेक्शन चाहिए हर बात में हर रिश्ते में .....कभी हाथ बढ़ाकर देखिये किसी की कमियों को दूर करने उसे संभालने हम खुद परफेक्ट हो या न हो खुश ज़रूर रहनें लगेंगे |
प्रियंका वाघेला
#filmreview #फिल्मसमीक्षा #Hichki
टॉरेट सिंड्रोम एक न्यूरोलौजिकल प्रॉब्लम है जिसकी शुरुवात आमतौर पर बचपन में होती है ,इस बीमारी में व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र में समस्या होती है - जिसमे वे अनियंत्रित गतिविधियाँ करते है या अचानक आवाज़े निकालते है जिन्हें Tics कहा जाता है |इसमें अचानक से आवाज़े निकालना ,बाँहें हिलाना ,गला साफ़ करना , बार - बार सूंघना , होटो को हिलाना शामिल है इन लक्षणों पर रोगी का कोई नियंत्रण नहीं रहता है ,हाँलाकि टॉरेट सिंड्रोम से रोगी की बौद्धिक क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता है ,लेकिन अपनी अनियंत्रित गतिविधियों की वजह से वे शर्मिंदगी महसूस करते है और उनकी सामजिक गतिविधियों में भागेदारियां कम होती जाती है | इस बीमारी का सटीक कारण अभी तक अज्ञात है |इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन दवाइयों और मनोवैज्ञानिक थैरेपी के जरिये इसे कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है |
फिल्म का पहला द्रश्य - रानी मुखर्जी एक स्कूल में इन्टरव्यू देने आई है ,एक बच्चे का पेपर एरोप्लेन उसके पैरों के पास आकर गिरता है रानी उसे उठाकर देते समय जा ..जा ...............जा जा की अजीब सी आवाज़े निकालती है और अपना सर झटकती है ...........यह सीन देखकर सच में हंसी आ गयी , लेकिन ये आवाज़ रूकती नहीं वो अपने मुँह में पेंसिल दबाकर उसे रोकने की कोशिश करती है तब लगता है के वो तकलीफ़ में है ! आगे के द्रश्य में जब रानी बताती है की उन्हें हिचकी नहीं आ रही ये एक बीमारी है जिसे टॉरेट सिंड्रोम कहा जाता है ....इन्टरव्यू लेने वाले लोग उनसे इस बीमारी के बारे में पूछते है की क्या सोते समय भी वे ऐसी आवाज़े निकालती हैं ? रानी जवाब देती है -नहीं सर तब तो मैं सो रही होती हूँ ना ! * लेकिन कब तक सोते रहेंगे ...मैं और मेरा टॉरेट *
नैना माथुर के किरदार की सबसे बड़ी खासियत है उनका आत्मविश्वास ! और रानी मुखर्जी ने टॉरेट सिंड्रोम को इस तरह निभाया है की हमें वे सचमें इस सिंड्रोम से पीड़ित नैना लगती है और हमारे सामने पूरी फिल्म में दो ही चीज़े रहती है उनकी तकलीफ , और दूसरों के सिंड्रोम दूर करने की कोशिशे !!
नैना टीचर ही बनना चाहती है क्योंकि जब वो छोटी बच्ची थी और इस बीमारी से परेशान थी तब उसके एक टीचर ने उसकी तकलीफ को समझा उसे सम्मानित ढंग से सामान्य बच्चों के साथ पढ़नेका हक़ दिलाया आत्म विश्वाश लौटाया जो समाज के बाकी लोगो के साथ - साथ उसके पिता भी नहीं कर पाए थे और शर्मिंदा थे उसकी कमज़ोरी पर |नैना एक अच्छे शिक्षक की कीमत पहचानती थी एक अच्छा शिक्षक छात्र का जीवन बदलनें की ताकत रखता है जो नन्हा पौधा उसकी जमीन पे नाज़ुक जड़ों के साथ आता है उसे जमीन की मजबूत पकड़ के साथ आसमान की ओर सर उठाकर देखना शिक्षक ही सिखाते है और नैना फिल्म में यह कर दिखाती है - उन्हें 9 f की क्लास मिलती है पढ़ाने के लिए जिसमे पास की झुग्गी के कुछ बच्चे आते है जिन्हें राईट टू एजुकेशन के तहत एडमिशन देना स्कूल की मजबूरी होती है और पूरे स्कूल के लिए ये बच्चे किसी सिंड्रोम की तरह है, जिससे वे छुटकारा पाना चाहते है | नैना इन बच्चों के लिए स्कूल और टीचर्स की नापसंदगी को देखती और समझती है , वहीँ दूसरी ओर बच्चों की नफ़रत ,बदमाशियों ,और उसे भगा देने की सारी कोशिशों को अंततः अपने लिए प्यार और सम्मान में बदल देती है साथ ही बदलते है 9 f के सभी बच्चे और पूरा स्कूल !
हम सभी अपनी कमियों से भागते है , उन्हें स्वीकारना नहीं चाहते ठीक नहीं करना चाहते ....वैसे भी जब तक स्वीकारेंगे नहीं तो कमियाँ ठीक भी कैसे होँगी ? हाँ लेकिन एक चीज़ जरूर है जो हममे से अधिकांश लोग किया करते है - दूसरों में कमियाँ खोजना और उनकी हंसी उड़ाना......उसपर अगर किसी को शारीरिक अक्षमता हो तो हम उसकी सहायता के लिए आगे आने की बजाय उसपर आसानी से हँस लेते है या किनारा कर लेते है | हम सभी को परफेक्शन चाहिए हर बात में हर रिश्ते में .....कभी हाथ बढ़ाकर देखिये किसी की कमियों को दूर करने उसे संभालने हम खुद परफेक्ट हो या न हो खुश ज़रूर रहनें लगेंगे |
प्रियंका वाघेला
#filmreview #फिल्मसमीक्षा #Hichki
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