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फिल्म समीक्षा – भारत

फिल्म समीक्षा – भारत
यह फिल्म 1947 में हुए भारत – पाकिस्तान बटवारे की प्रष्ठभूमि से निकलकर 2010 तक का सफ़र तय करती है | जिसमें 8 साल का एक बच्चा जिसका नाम भारत है, बिगड़े हुए हालातों की वजह से अपने परिवार के साथ हिन्दुस्तान आते समय बहन से बिछड़ जाता है, पिता बहन को ढूँढने जाते समय भारत से वादा लेते है कि – वह अपनी माँ और भाई बहन का ध्यान रखेगा | भारत पिता से किया वादा पूरी शिद्दत से निभाता है और अपने पिता व खोई हुई बहन गुड़िया के हिन्दुस्तान लौट आने का इंतजार करता है ......सत्तर साल की उम्र तक !
फिल्म एक 8 साल के बच्चे की जीवन यात्रा है जिसने कई ऐतेहासिक बदलाव देखे है, हिंसा, आर्थिक, सामाजिक,एवँ भावनात्मक संघर्ष को झेला है और साथ ही यह बदलाव और संघर्ष देखा है उसके "देश" ने यह बात केवल फिल्म के पोस्टर पर है फिल्म में केवल सलमान है, देश कही नहीं है | फिल्म अपनी कहानी और भावनात्मक मुद्दों की वजह से बेहतरीन बन सकती थी ! ऐतेहासिक, सांस्कृतिक एवँ भावनात्मक पृष्ठभूमि पर हमारा देश हमेशा से समृद्ध रहा है | बेशकीमती कहानियों का पिटारा है यह देश .....लेकिन पता नहीं क्यूँ ...ज्यादातर फ़िल्में संसाधनों के दुरूपयोग की मिसालें बनती जा रही है !! फिल्म इंडस्ट्री के हर क्षेत्र में बेमिसाल हुनरमंद व्यक्तियों की भरमार है फिर चाहे वह अभिनेता हों या - निर्देशक, लेखक ,एडिटर, संगीतकार ,गीतकार, सिनेमेटोग्राफर, कोरियोग्राफर, टेक्नीशियन ...... लेकिन जब फिल्म किसी एक व्यक्ति को ही महिमामंडित करने के लिए बनाई जाती है तो बाकी प्रतिभाओं का दुरूपयोग स्वयं ही हो जाता है | यहाँ किसी एक व्यक्ति का स्टारडम बरगद की तरह अपने साए में किसी को पनपने नहीं देता है | दर्शको के एक ख़ास वर्ग की पसंद बन जाने के बाद अभिनेता अपनी उस छवि से आजीवन बाहर नहीं निकलना चाहता जो सालों पहले उसनें परदे पर निभाए थे, लेकिन ऐसा करके जाने –अंजाने वह अपने आपको ही निखारना, तराशना छोड़ देता है ....युवा दिखाई देते रहने के लिए जैसे अपने शरीर का ध्यान रखना जरूरी है वहीँ अभिनय की धार भी आपसे अलग - अलग आयाम मांगती है , समय का बदलना जो नहीं सुन पाता है – वह समय के उसी हिस्से में रुका रह जाता है | जो सुन लेते है – वे दिग्गजों में शामिल होते है !
फिल्म में सत्तर साल की उम्र के सलमान और कटरीना कहीं से उम्र दराज़ नहीं लगते, सिवाय बालों में थोड़ी सी सफेदी के, उन पर उम्र का कोई असर नहीं है ! फिल्म में घटनाएं सलमान के लिए बुनी गयी है वे जहाँ भी जाते है सब ठीक कर देते है | जाते हैं मैकेनिक बनकर दिखते हैं अफसर ! सत्तर की उम्र में राशन की दुकान पर बैठते जरूर हैं लेकिन अकेले चार – छह बाइक में आये गुंडों को ठोक डालते हैं | फिल्म में भारत के शादी से इनकार कर देने के बाद भी कटरीना उनके लिए सबकुछ करती है - कभी अपनी नौकरी छोड़कर सलमान की दुकान संभालती है तो कभी - नौकरी की सहायता से ही उनकी खोई हुयी बहन को ढूँढ निकालती है ! फिल्म देखते हुए आप मैडम सर ( कटरीना ) जैसी खूबसूरत सपोर्टिव प्रेमिका की ख्वाहिश जरूर करेंगे जो रहे लिव इन में और निभाए पत्नी से ज्यादा |
कहानी की जरूरत के हिसाब से 1947 से 2010 तक पात्रों की जीवन शैली व सेट में कुछ बदलाव तो दिखते है लेकिन जब बात गानों की आती है तो वे आधुनिक लगते है | डायरेक्टर का संघर्ष मैं समझ सकती हूँ कि उन्हें सलमान की स्टार छवि और कहानी की डिमांड के बीच कितना अधिक जूझना पड़ा होगा !
अभिनय की बात करे तो बहुत से अच्छे अभिनेताओं - कुमुद मिश्रा, सोनाली कुलकर्णी को फिल्म की पटकथा में उचित स्थान ही नहीं मिला है | हम इंतज़ार ही करते रह जाते है कि उनकी बारी आएगी लेकिन फिल्म सलमान, कटरीना और सुनील ग्रोवर के चारों ओर ही घूमती रहती है- दिशा पाटनी केवल फिल्म के सर्कस वाले हिस्से को ग्लैमराईज़ करने के लिए थी ! सुनील ग्रोवर कपिल के शो में ज्यादा हंसा लेते है, हास्य भी ठीक से बुना नहीं गया जिसका सबसे फूहड़ नमूना जहाज पर आये लुटेरों के साथ जबरदस्ती की ठूंसी हुयी कॉमेडी और नाच – गाना है | जैकी श्रॉफ ने अपने किरदार को अच्छा निभाया है, कटरीना ने हरबार की तरह अपने आपको जादुई रूप वाली कमाल की नर्तकी साबित किया है ! और सलमान फिल्म में भी सलमान ही है | हाँ बाल कलाकारों में दोनों लड़को ने अच्छा अभिनय किया है |
निर्देशन और पटकथा दोनों कमज़ोर है इसलिए मैं एडिटिंग को दोष नहीं दूँगी सिर्फ अच्छी एडिटिंग से चमत्कार नहीं किया जा सकता | कई बार कमज़ोर या साधारण कहानी भी उम्दा निर्देशन और ट्रीटमेंट की वजह से अच्छी निकल आती है यहाँ इसका ठीक उल्टा है | संगीत मसाला फिल्मों के जैसा है – 1964 में स्लो मोशन जैसे गाने की कल्पना ही अद्भुत है ! इश्के दी चाशनी सुरीला गाना है लेकिन कपड़ों को देखकर लगता है जैसे 1974 में 2010 के डिज़ाइनर पहुँच गए हों ! साथ ही सलमान के हाथों में चमकती एल ई डी लाइट की झालर वो भी 1974 में ? कमाल है !!
भारत के दर्शक भी अपने स्टार्स से खास तरह के रोल और सिनेमा की ही मांग करते है, इस वजह से बड़े स्टार की भी यह मजबूरी हो जाती है उसी दायरे में सीमित रहना ....सलमान के साथ भी कुछ ऐसी ही बात हो रही है कि उनका स्टारडम उनको बहुआयामी होने से रोक रहा है | बहरहाल यह फिल्म केवल सलमान खान के फैन्स के लिए है | टिकट खरीदनें से पहले विवेक से काम ले|
निर्देशक - अली अब्बास ज़फर
अभिनय - सलमान खान, कटरीना कैफ, जैकी श्रॉफ ,सुनील ग्रोवर, दिशा पाटनी .
प्रियंका वाघेला
7\6\2019
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